मालवा क्षेत्र की मटरफली की मिठास घोल रही लोगों के जीवन में मिठास


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ठंड का समय और शादियों की सीजन में खाने के पकवान में हरे मटर का स्वाद भला कौन भूल सकता है । इस समय जिले सहित पूरे प्रदेश में मटर की काफी मांग है। इसी मांग को पूरा करने प्रदेश के अन्नदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है जो कड़ी मेहनत के साथ खाने के जायके को बड़ा रहे है। इसी योगदान में उज्जैन जिले के खाचरोद तहसील के मटर की मांग प्रदेश के अलावा अन्य राज्यो में भी अपनी मिठास घोल रहे है ।


संपूर्ण मालवा क्षेत्र में खाचरौद तहसील हरी सब्जियों के उत्पादन में सबसे अग्रणी स्थान रखती है। यहां पैदा हुई सब्जियां दूर-दूर तक जाती हैं। खासकर यहां पैदा हुई हरी मटर अपनी मिठास के कारण पूरे देशभर में प्रसिद्ध है। यही कारण है यहां हर वर्ष मटर की खेती का रकबा बढ़ता जा रहा है। तहसील का कोई गांव ऐसा नहीं है जहां इसकी खेती नहीं की जाती हो। इन दिनों तहसील मुख्यालय के चारों ओर के 25-30 किमी के क्षेत्र में मटर लहलहा रही है। खाचरौद से रोज मटर ट्रकों व ट्रेनों में लोड होकर मुंबई, दिल्ली, वडोदरा, सूरत, उदयपुर, कोटा, भरतपुर, चित्तौडग़ढ़, रामगंजमंडी, अहमदाबाद पहुंच रही है।


जो लोगो के खाने का जायका बढा रहे है। तो वही इस मटर की सीजन में आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार का अच्छा अवसर प्राप्त होता है जिसके चलते 2 से 3 महीने के इस सीजन में कड़ी मेहनत के बाद अपना गुजर-बसर आसानी से कर सकते है
आपको बता दे कि इस फसल के व्यापार में किसानों को पैसा नकद मिलता हैं। इस कारण किसान रात दिन मेहनत कर सोयाबीन की कटाई के बाद छोटे से रकबे में मटर बोता है। किसान सुबह 5 से रात 1 बजे तक इस कार्य में लगा रहता है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई के लिए रात में बिजली उपलब्ध होती है तो कई क्षेत्रों में दिन में व सुबह। पौधों में फल आने के बाद किसान सुबह 8 से शाम 5 बजे तक मजदूरों से फलियां तुड़वाते हैं। फिर उन्हें बोरों में भरकर स्थानीय थोक मंडी व रेलवे स्टेशन लाते हैं।


थोक सब्जी मंडी में व्यापारी फली की नीलामी में खरीद अन्य बड़े शहरों में भेजते हैं। कई किसान रेल से बड़े शहरों के व्यापारी को सीधे मटर भेजते हैं। मटर के सीजन में मांग और उत्पादन के दौरान भाव 25 से 150 रु प्रति किलो तक रहता है जिससे किसानों को अच्छी आवक हो जाती वही इस फसल के बाद किसान गेहू की फसल भी ले लेता है जिससे किसानो द्वारा तकनीकी खेती से 1 वर्ष में 3 फसल प्राप्त करते है।वही इस बार मौसम की खराबी के कारण उत्पादन कम होना भी बताया जा रहा है।


हरी मटर की बंपर पैदावार होने से जहा किसानों को तो लाभ मिलता ही है वही कई मजदूरों को भी रोजगार मिलता है। मटर के सीजन में ये मजदूर 150 से लेकर 300 रुपए रोज के हिसाब से फली तोड़ते हैं। इस कारण सीजन में बाजार में मजदूरों का टोटा भी दिखाई पड़ता है। इसी कारण राजस्थान व गुजरात से भी मजदूर फली तोड़ते हैं। जो सुबह जल्दी निकल कर मजदूरी कर देर रात तक घर लौटते है। वही इस सीजन में ।


ऑटो व अन्य लोकल वाहन चालक की भी अच्छी मजदूूरी हो वही इन वाहन चालकों का कहना पड़ता है कि जितना किराया भाड़ा हमको इन तीन महीनों मेंं मिलता उतना पूरे साल नहीं मिल पाता है। मटर की बंपर आवक होने से मटर के भाव व मजदूरी में भी कमी आने की संभावना रहती है ।


आप को बता दें खाचरौद की मटरफली मंडी आसपास के क्षेत्र में मशहूर है। उज्जैन संभाग में फली की सबसे बड़ी मंडी खाचरौद में ही है। इस कारण स्थानीय मंडी प्रांगण में फली मंडी का संचालन नहीं होने के कारण विगत कई वर्षों से नगर के व्यापारियों द्वारा निजी भूमियों को किराये पर लेकर मंडी का संचालन किया जा रहा था। व्यापारियों द्वारा कई वर्षों से मंडी हेतु शासकीय भूमि उपलब्ध कराने की मांग भी की जा रही थी।


जिस पर मुहर लगाते हुए विगत वर्ष कलेक्टर ने नागदा रोड कॉलेज के सामने स्थित शासकीय भूमि पर मंडी लगाने की स्वीकृति प्रदान की थी। इस वर्ष भी उसी भूमि पर मंडी का संचालन किया जा रहा है। इससे व्यापारियों में हर्ष है।वही निजी जगह पर मंडी होने के कारण मंडी को लाखों रुपए के राजस्व की हानि भी हो रही है जिसके चलते किसान व व्यापारियों ने नई मंडी की जगह के लिए प्रशासन से गुहार लगाई है जिसके चलते प्रशासन ने मंडी हेतु जगह अधिग्रहण कर निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। वही किसानों द्वारा मंडी प्रशासन से मांग की है कि मटर फली का विक्रय नीलामी पद्धति से किया जाए जिससे किसानों को इस फसल का और अच्छा दाम प्राप्त होगा वर्तमान में व्यापारियों द्वारा थोक भाव के हिसाब से मटर फली की खरीदी की जा रही है।


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