क्या राहुल गांधी से डर गई है भाजपा? : मानहानि के मामले में अधिकतम सजा, तुरंत संसद से बर्खास्तगी, आ रही साजिशों की बू

मानहानि के मामले में अधिकतम सजा, तुरंत संसद से बर्खास्तगी, आ रही साजिशों की बू


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 क्या मानहानि और भ्रष्टाचार समेत अन्य आपराधिक कृत्य को लोकतांत्रिक व्यवस्था में बराबर माना जायेगा?

राहुल गांधी के साथ अन्याय हुआ है, कांग्रेस एकजुट होकर इसका विरोध करेगी- पूर्व सीएम कमलनाथ

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विजया पाठक

दिनांक 24 मार्च 2023 भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय में से एक माना जायेगा। नए भारत के इस अघोषित आपातकाल में क्या विपक्षी दलों से सवाल नहीं पूछने देंगे। चुनावी भाषणों के आधार पर आपराधिक मानहानी किसी दूसरे व्यक्ति से लगाई जाएगी और सजा दिलाकर आपको अपनी बात रखने जनता ने जो प्लेटफार्म दिया है वो भी छीन लिया जाएगा। दरअसल इस हाईटेक ज़माने का लोकतंत्र में अब सत्ताधारी दल या उसके नेता के खिलाफ बोलने, लिखने या देखने पर बैन है। अभी हाल ही में बीबीसी की गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री देशभर में बैन कर दी गई। पिछले कुछ सालों से राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर हमले कर रहे थे, भारत जोड़ो यात्रा के पहले वो भाजपा राहुल गांधी को सीरियसली नहीं लेती थी पर भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी को मिले जनता के सपोर्ट से भाजपा का नजरिया बदल गया। अडानी-नरेंद्र मोदी संबंधों के ऊपर आक्रामक राहुल गांधी की लंदन व्याख्यान से देश में भाजपा के लगभग हर नेता ने कोस-कोस कर देश की बदनामी का तमगा उनको पहनाने की कोशिश की और कमोबेश जो बात वो वहां बोलकर आए वही बात अब चरितार्थ सिद्ध हो गई है।

इतने सारे संयोग से सजा का मार्ग प्रशस्त

दिनांक 13 अप्रैल 2019 को राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार से चुनावी रैली में एक भाषण दिया और जनता से प्रश्न पूछा कि जिसमें नीरव मोदी, ललित मोदी को लेकर बोला कि सारे चोर मोदी सरनेम वाले क्यों है? इसके बाद 16 अप्रैल 2019 को गुजरात सरकार के पूर्वमंत्री और सूरत से विधायक पूर्णेश मोदी ने आईपीसी की धारा 499, 500 और 504 से राहुल गांधी के ऊपर आपराधिक मानहानि का मामला सूरत की अदालत पर दाखिल किया गया। अपनी ही मानहानि पिटीशन पर पिटीशनर पुर्णेश मोदी 2022 में गुजरात हाईकोर्ट से स्टे ले आए। फरवरी 2023 में पिटीशनर पुर्णेश मोदी पुन: हाईकोर्ट गए और अपने लगाए स्टे का खात्मा करवा लिया। सूरत की अदालत से राहुल गांधी को इस "मानहानि मामले" में सर्वोच्च सजा अर्थात दो साल की सजा हुई, पर उनको आगे अपील करने के लिए 30 दिन की जमानत भी दी। सजा मिलने के 48 घंटे के भीतर राहुल गांधी को लोकसभा के सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया। गौर करने वाली बात यह है रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट में दो वर्ष या उससे ऊपर की सजा में सांसदी या विधायकी जाती है। कुल मिलकर इतने संयोग हुए जिससे पूरा मामला संदिग्ध नजर आ रहा है। आजाद भारत में पहली बार किसी नेता को भाषण के कारण सजा और संसद सदस्यता गई है।

शाहीन बाग में दिल्ली हाईकोर्ट की थी टिप्पणी- "चुनावी भाषाओं को लाईटली लेना चाहिए"

शाहीन बाग मामले में जब भाजपा के केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने "गोली मारो सालों को" को लेकर लोग दिल्ली हाईकोर्ट गए तो अदालत ने यह कहकर इसे खारिज कर दिया "चुनावों में दिए भाषण सामान्यता आम दिनों से अलग रहते हैं, कई बार माहौल बनाने के लिए ऐसे भाषण दिए जाते हैं जिसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। इसके आगे माननीय अदालत ने यह भी टिप्पणी की अगर यह बात हंसकर की गई है तो कोई मामला नहीं बनता है"। वैसे विपक्षी नेताओं के खिलाफ हर पार्टी के नेता कुछ ना कुछ जरूर बोलते हैं। जैसे कि इटली वाली, मंदबुद्धि, 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड, कपड़े पहनकर नहाना, यह तो स्वयं मोदी जी के कुछ चुनिंदा चुनावी शब्द थे। छिंदवाड़ा में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ को कपटनाथ और झूठनाथ कहा। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कमलनाथ को भ्रष्टाचारी और लूट खसोटी करने वाला कहा। भाजपा नेताओं की बदजुबानी पर तो 500 पन्नों की किताब लिखी जा सकती है। बात समझने की यह है कि लोकतंत्र में तो नेता बोलकर ही कोई अपना विरोध दर्ज करता है। पर आज भारत में अलोकतांत्रिक तरीके से चुप कराने के लिए मानहानि जैसे गैर-आपराधिक कृत्य को आपने आपराधिक कृत्य वाले नेताओं की लाइन में ही लगा दिया। अभी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ही 2019 में भाजपा के विधायक को आपराधिक मामले में सजा होने पर विधायकी से बर्खास्त करने पर, कांग्रेस सरकार को शिवराज सिंह चौहान आलोकतांत्रिक घोषित कर दिया था और 02 मिनिट का वीडियो जारी किया था। आज भारत की इस मामले में दुनिया भर में भर्त्सना की गई है।

यह लोकतंत्र की हत्या है- कमलनाथ, पूर्व मुख्‍यमंत्री, मप्र

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने के बाद मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक के बाद एक तीन ट्वीट कर लिखा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस के सम्मानित नेता राहुल गांधी के खिलाफ षडयंत्र करने में सारी हदें पार कर दी हैं। जिस तरह से उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द की गई है, उससे स्पष्ट है कि मोदी सरकार राहुल गांधी से भयभीत हैं। कमलनाथ ने कहा कि सरकार उनके उठाए सवालों का जवाब देने के बजाय उन्हें लोकसभा से दूर करने का रास्ता तलाश रही थी। आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत दुख और पीड़ा का दिन है। लेकिन एक बात अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि ऐसे ही षडयंत्र स्व. इंदिरा गांधी के खिलाफ भी किए गए थे, लेकन उससे इंदिरा जी मजबूत ही हुई थीं, कमजोर नहीं। आज भारत की जनता पहले से कहीं मजबूती के साथ राहुल गांधी के साथ खड़ी है, इंसाफ होकर रहेगा। कमलनाथ ने कहा कि घर थोड़े ही ना बैठेंगे। राहुल गांधी पूरे देश में दौरा करेंगे। मोदी सरकार के भ्रष्टाचार और उनके चहेते खरबपति लोगों के संबंधों को उजागर करेंगे। मोदी जी विदेशों में जमा कालाधन वापस लाओ या गद्दी छोड़ो। लड़ेंगे और जीतेंगे। इसके अलावा प्रदेश के अन्‍य कांग्रेसी नेताओं ने भी राहुल गांधी पर हुए इस एक्‍शन पर आक्रोश जताया है।

किस दिशा में जा रहा है हमारा लोकतंत्र

संसद के भीतर अब ऐसी स्थिति आ गई कि विपक्षियों को बोलने नही दिया जा रहा है। डाक्‍यूमेंटेशन देने नहीं दिया जाता है। राहुल गांधी जब संसद में बोलते हैं तो उनका जबाव सरकार नहीं देती है। सब पूछना चाहता है कि संसद में सवाल करना कौनसा गुनाह है। मोदी सरकार को राहुल का सवाल पूछना ही गलत लगता है। इतिहास जरूर पूछेगा कि संसद में सवाल पूछने से क्‍यों रोका गया है। संसद में उनके पूरे भाषण को हटा दिया जाता है। आज राहुल गांधी पर हुई कार्यवाही से पूरा विपक्ष उनके साथ खड़ा हो गया है। सही मायनों में कहा जाये तो इस कार्यवाही से पूरे विपक्ष को एक होने का अवसर दे दिया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का दोष यही था कि देश से भाग गए भगोडों के नाम उन्होंने भरी सभा में पुकारे थे। लेकिन यह असली सवाल नहीं है। यह सवाल व्यक्ति राहुल गांधी तक सीमित है। यह सवाल उस प्रवृत्ति तक नहीं जाते जिसके केंद्र में राहुल गांधी नाम का व्यक्ति है। उस प्रवृत्ति को समझने के लिए नए जमाने की तानाशाही और उसे लागू करने के अत्याधुनिक औजारों को गौर से देखना होगा। सारा खेल इस बात का है कि कोई भी तानाशाह, सत्ता हमेशा के लिए अपने हाथ में चाहता है और उसके लिए हर वह हथकंडा अपनाता है जिससे उसकी सत्ता मजबूत होती है और हर उस संस्था को कमजोर या बर्बाद कर देता है जो उसके साथ सत्ता की हिस्सेदारी करना चाहती है। भारत में सत्ता पाने का सीधा माध्यम चुनाव में जीत हासिल करना होता है। इसलिए सबसे पहले जरूरत होती है कि चुनाव को प्रभावित किया जाए या यूं कहें उसे अपने कब्जे में लिया जाए।

आज वर्तमान में गौर से देखा जाए तो लोकतंत्र का दमन करने के लिए यही हथकंडे पूरे देश में अपनाए जा रहे हैं। राहुल गांधी इसके ना तो पहले शिकार हैं और ना ही आखरी। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, हेमंत सोरेन, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, केएसआर सब के ऊपर यही हथकंडे अपनाए गए हैं। फर्क बस इतना है कि किसने अपना दामन किस हद तक बचा कर रखा है और उसकी राजनैतिक वजनदारी कितनी है। निश्चित तौर पर राहुल गांधी इन सभी नेताओं में सबसे ज्यादा वजनदार है। वे इनकम टैक्स से नहीं डरे, सीबीआई से नहीं डरे, ईडी की 60 घंटे तक चली पूछताछ से नहीं डरे, एसपीजी सुरक्षा हटाए जाने से नहीं डरे, उनके खिलाफ वर्षों से चलाए जा रहे दुष्प्रचार अभियान से नहीं डरे, देश के सबसे बड़े धन्ना सेठ की तिजोरी से नहीं डरे और तानाशाह से आंख में आंख मिलाकर संसद और सड़क पर उसका कच्चा चिट्ठा खोलने से नहीं डरे। इसलिए उन्हें रास्ते से हटाने के लिए अतिरिक्त मेहनत की जा रही है। लेकिन असल बात तानाशाही से संघर्ष की है। जब कोई तानाशाह गद्दी पर बैठता है, तो मीडिया, गोदी मीडिया बन जाता है, संवैधानिक प्रक्रिया कांस्टीट्यूशनल हार्डबाल बन जाती हैं और पूरा लोकतांत्रिक ढांचा शरीर से लोकतांत्रिक दिखता है लेकिन उसकी प्रवृत्ति तानाशाही की हो जाती है। पुलिस चोर को नहीं पकड़ती, फरियादी को पकड़ती है। अदालत अपराधी को दंडित नहीं करती, फरियादी से सवाल करती है। न्याय की मूल भावना मर जाती है और प्रक्रिया ही कानून बन जाती है। जुल्म को न्याय की तरह प्रचारित किया जाता है।

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